भारतीय पर्वो के उदय होने से निराशा के बादल छट जाते हैं और जीवन रूपी आकाश मण्डल में अध्यात्म, आस्था, विश्वास, श्रद्धा, उत्सव, उमंग और बंधुत्व रूपी सात चटक रंग एक साथ इंद्रधनुष की भांति प्रदिप्त हो जाते हैं । भारत अपनी संस्कृतिक विरासत के कारण दुनिया में ध्रुव तारा की भांति अलग से ही दिखाई दे जाता है । यहां लगभग हर सप्ताह किसी न किसी पर्व, उत्सव, त्यौहार के उमंग से लोग नाचते-गाते रहते हैं । इन्हीं पर्वो में एक आस्था रंग का पर्व है ‘शरद पूर्णिमा पर्व ।‘
चन्द्रमा का सीधा संबंध मन से होता है और मन का सीधा संबंध आंनद से होता है । चन्द्रमा का घटना-बढ़ना और मन का खिन्न होना-प्रसन्न होना एक सा है । पूर्णिमा में जब चांद अपने पूरे आकार में होता है तो मन भी प्रसन्नता से खिल उठता है ।
चनद्रमा के प्रभाव यदि कला में आंके तो इसकी संपूर्ण कला 16 होती है । अपने घटने-बढ़ने के क्रम में इन 16 कलाओं में कुछ कला जोड़ते हैं अथवा छोड़ते हैं किन्तु संपूर्ण 16 कला में चन्द्रमा पूरे साल में केवल एक दिन ही रह पाता है और वह दिन है ‘शरद पूर्णिमा’ का ।
इस पर्व को भिन्न-भिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है । उत्तर भारत के ब्रज श्रेत्र में रास पूर्णिमा एवं टेसू पूनै नाम से मनाया जाता है । उडिसा, पश्चिम बंगाल, असम जैसे कुछ राज्यों मे कोजगारी लक्ष्मी पूजा के नाम से मनाया जाता है । इसे कौमुदी व्रत के रूप में भी मनाते हैं ।
शरदपूर्णिमा कब मनाते है – When is Sharad Purnima celebrated?
शरद पूर्णिमा का पर्व शरदीय नवरात्र और दशहरा के चंद दिनों के बाद ही आता है । अश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक शारदीय नवरात्र और दशमी तिथि को विजयदशमी या दशहरा इसके ठीक चौथे-पॉंचवे दिन पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा का पर्व पूरे भारत में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है । वर्षा ऋतु के अवसान और शरद ऋतु के आग मन के संधि बेला में शरद पूर्णिमा का पर्व पूर्णिमा के गोलाकार चाँद, जो अपने संपूर्ण 16 कला के साथ लेकर आता है ।
शरदपूर्णिमा क्यों मनाया जाता है – Why is Sharad Purnima celebrated?
प्रत्येक पर्व के मनाने के पिछे कोई न कोई कारण होता ही है । इस पर्व को मनाये जाने के पिछे भी कई-कई कारण है । इनमें प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-
1.ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा अपनी सभी सोलह कलाओं के साथ उदित होता है । पूरे वर्ष में केवल आज ही के दिन यह संयोग बनता है इसके साथ ही इसी दिन चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे करीब भी होता है । ऐसी मान्यता है कि चन्द्रमा के पृथ्वी के करीब होने एवं 16 कलाओं से पूर्ण होने के कारण इनकी किरणें अमृत के समान लाभदायक हो जाती हैं ।
इस कारण इसे शरद पूर्णिमा पर्व के रूप में मनाया जाता है । कुछ लोग मानते है समुद्र मंथन में इसी दिन अमृत प्राप्त हुआ था । इस कारण भी इसे पर्व के रूप में मनाया जाता है ।
2. भगवान बिष्णु के 24 अवतारों में केवल भगवान कृष्ण का अवतार 16 कलाओं से पूर्ण था । श्रीमद्भागवत में वर्णित अलौकिक प्रेम एवं नृत्य का संगम महारास, रास लीला इसी शरद पूर्णिमा पर हुआ था, जिस समय चाँद भी 16 कला में और भगवान कृष्ण भी 16 कला में थे । उस अविनाशी के इस अमृतमयी रास लीला के याद में यह शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है । इसलिये इस पर्व को ‘रासपर्व’ या ‘रास पूर्णिमा’ भी कहते हैं ।
3. लोकमान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा के रात को धन की देवी माता लक्ष्मी पृथ्वी में घूमने आती है और जिस घर में लोग जागरण करते हुये माता के स्वागत करते हैं, उनके यहां धन-धान्य की वर्षा करती है । इस लिये लोग इस दिन माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये रात्रि जागरण करते है । इसे कोजगारी लक्ष्मी पूजा के नाम से जानते हैं ।
4. हिन्दू धर्म में एकादशी, प्रदोष एवं पूर्णिमा व्रत को महान लाभकारी बताया गया है। इस मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा व्रत करने से नि:संतान को संतान की प्राप्ति होती है । इसलिये संतान की कामना के साथ इस व्रत को मनाते हैं ।
शरदपूर्णिमा कैसे मनाया जाता है – How is Sharad Purnima celebrated?
1. शरद पूर्णिमा का चाँद 16 कलाओं के साथ पृथ्वी के सबसे करीब होता है इसलिये इनसे निकलने वाली किरणें लाभकारी होती हैं इसी कारण मान्यता है कि इस दिन अमृत की वर्षा होती है । इस अमृतवर्षा को प्राप्त करने के लिये भारत के लगभग सभी हिस्सों में लोग गाय के दूध से खीर बनाते हैं और इस खीर को अपने छत पर या ऐसे स्थान पर रखते हैं जिससे इस पर चन्द्रमा की किरणें पड़े । चन्द्रकिरणों से युक्त इस खीर को महाप्रसाद के रूप में खाया जाता है । मान्यता है कि इस खीर को खाने से तन मन स्वस्थ रहता है रोगों का आक्रमण नहीं होता । इससे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है ।
2. मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा के रात के वृंदावन के निधि वन में भगवान कृष्ण आज भी रास रचाते हैं । इस रास लीला के स्मृति में वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर में इस दिन भगवान को इस प्रकार सजाया जाता है कि वह श्वेत परिधान में मुरली बजाते हुये मन मोहक लगने लगते हैं जैसे सचमुच भगवान मुरली बजा रहे हों, यह श्रृंगार केवल शरद पूर्णिमा के दिन ही होता है इसलिये देश-विदेश के असंख्य भक्त इस छवि के दर्शन के लिये वृंदावन पहुँचते हैं ।
भगवान कृष्ण के महारास के याद में विभिन्न मंदिरों में कृष्ण भजनों का संगीत महोत्सव का आयोजन किया जाता है । विशेष रूप से दक्षिण भारत के रंग नाथ मंदिर, और कई मंदिरों में संगीत एवं नृत्य का महोत्सव आयोजित किये जाते हैं । इस दिन अनेक स्थानों में भी सार्वजनिक रूप से भजन संध्या आदि का भी आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही लोग अपने घर में ही कृष्ण अराधना करते रात जागरण करते हैं ।
3. उडिसा, पश्चिम बंगाल, असम जैसे कुछ राज्यों शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूजा के रूप में मनाते हैं । इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है । इस दिन माता लक्ष्मी की ठीक उसी प्रकार पूजा की जाती है जिस प्रकार दीपावली पर करते हैं । अंतर केवल यह है कि दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा के बाद रात्रि जागरण का कोई विशेष नियम है जबकि इसमें लक्ष्मीजी की विधिवत पूजा करने के पश्चात लक्ष्मीजी के स्वागत में रात्रि जागरण करना चाहिये ।
लोक मान्यता के अनुसार जिस घर में रात्रि जागरण किया जाता है वहॉं माँ लक्ष्मी धन-धान्य की पूर्ति करते हैं । लोग यह भी मानते हैं कि इस दिन घर का द्वार बंद कर सोने से माँ लक्ष्मी रूष्ट हो जाती हैं और उस घर दरिद्रता का प्रवेश का हो जाता है ।
4. ऐसे वर्ष के प्रत्येक पूर्णिमा को व्रत किया जाता है किन्तु शरद पूर्णिमा व्रत का विशेष महत्व है इसे कौमुदी व्रत के नाम से करते हैं । इस दिन निराहार या फलाहार व्रत किया जाता है । ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है । यदि इस व्रत को संतानवति माता करे तो उनके संतान के कष्ट दूर होते हैं ।
5. शरद पूर्णिमा के अवसर पर अनेक स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है । कई स्थानों पर कवि-सम्मेलन किये जाते हैं । इन सबका एक मात्र उद्देश्य रात्रि जागरण करना होता है । इस कार्यक्रम में खीर बनाकर कार्यक्रम के बाद प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं ।
शरदपूर्णिमा पर्व का महत्व – Importance of Sharad Purnima
प्रत्येक पर्व का अपना एक धार्मिक एवं अध्यात्मिक महत्व होता है । इसी प्रकार शरद पूर्णिमा को भगवान कृष्ण के महारास के स्मृति में किये जाने पर भक्तों की मुक्ति की कामना होती है । वहीं लक्ष्मी जी के पूजन से सुख-समृद्धि की कामना करते हैं । कौमुदी व्रत के रूप मे संतान की कामना करते हैं । इस प्रकार इसका धार्मिक व अध्यात्मिक महत्व स्पष्ट होता है ।
इस पर्व पर संगीत-नृत्य महोत्सव आयोजित किये जाते हैं साथ ही साथ अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं कवि-सम्मेलन आयोजित किये जाते हैं जिससे इसका अपना एक विशेष सांस्कृतिक महत्व है ।
इस पर्व पर अनेक सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किये जाने के कारण लोगों में सामाजिक समरसता की भावना प्रबल होती है । इस प्रकार इस पर्व का एक विशेष सामाजिक महत्व भी होता है ।
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Reference
source https://hindiswaraj.com/sharad-purnima-kyu-manate-he-in-hindi/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=sharad-purnima-kyu-manate-he-in-hindi
source https://hindiswarajcom.blogspot.com/2020/09/why-is-sharad-purnima-celebrated.html
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